हसदेव अरण्य के आदिवासियों की जीत
कौशल किशोर | twitter @mrkkjha
छत्तीसगढ़ की भूपेश बघेल सरकार ने इस बीच हसदेव अरण्य में वनों की कटाई पर अनिश्चितकालीन रोक लगाने का फैसला किया है। अडाणी को आवंटित कोयला के तीन खदानों के लिए अब हरे भरे वनों को साफ करने की प्रक्रिया पर रोक लगती है। राहुल गांधी ने कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के यूथ विंग “एक्सटिंगसन रिबिलियन” की खुली चर्चा में 23 मई (सोमवार) को इस मामले का भी जिक्र किया था। सात साल पहले हसदेव अरण्य मामले में उनकी बातों का जिक्र कर वर्तमान आंदोलन से जुड़े सवाल के जवाब में वे दो सप्ताह का समय मांगते हैं। छत्तीसगढ़ सरकार में स्वास्थ्य मंत्री एवं अंबिकापुर के विधायक त्रिभुवनेश्वर शरण सिंह देव इस सत्याग्रह में शामिल लोगों से मिल कर अच्छी राजनीति करते हैं। आज सुर्खियों में दिल्ली और पंजाब के स्वास्थ्य मंत्रियों के भ्रष्टाचार का सवाल है, ऐसे में जैवविविधताओं के संरक्षण के मामले में छत्तीसगढ़ की यह नीति कितनी व्यापक होगी, इसका पता वक्त ही बताएगा।
पैंतीस हजार वर्ग मील में फैले दंडकारण्य में हसदेव नदी का प्रवाह 330 किलोमीटर लंबा है। इसके तटों पर जैवविविधताओं के संरक्षण के लिए 1995 वर्ग किलोमीटर में लेमरु हाथी रिजर्व अभ्यारण्य शुरु किया गया। हसदेव नदी घाटी का विस्तार दस हजार वर्ग किलोमीटर में है। महानदी की इस सहायक नदी जितनी लंबी कोई नदी इजरायल जैसे देश में नहीं है। पिछले साल पर्यावरण व वन मंत्रालय के अधीन सक्रिय इंडियन काउंसिल ऑफ फॉरेस्ट्री रिसर्च एंड एजुकेशन (आईसीएफआरई) हसदेव अरण्य को मध्य भारत के सबसे विशाल अखंडित वन्य क्षेत्र के तौर पर चिन्हित कर इसके संरक्षण का मार्ग प्रशस्त करती है। इसके अलावा इस क्षेत्र की रक्षा में आदिम काल से लगे आदिवासियों की आबादी भी कम सक्रिय नहीं है। हालांकि मुख्यधारा में इन्हें शामिल करने के नाम पर लंबे अरसे से इनकी संस्कृतियों को विकृत करने का अभियान भी तेजी से चल रहा है।
प्राकृतिक सौंदर्य के अतिरिक्त इस क्षेत्र में खनिज संपदाओं की भरमार है। हसदेव कोलफील्ड्स के दो दर्जन खान करीब दो हजार वर्ग किलोमीटर में फैले हैं। कोरबा, सरगुजा और सूरजपुर जिला के लोग इसी वजह से परेशान होकर विरोध प्रर्दशन की राह चुनते हैं। इसके कारण हसदेव अरण्य सुर्खियों में है। स्थानीय लोगों और लेमरु हाथी रिजर्व की जरूरतों को ध्यान में रख कर छत्तीसगढ़ सरकार ने दो साल पहले पांच कोल ब्लॉक का आवंटन रद्द करने का आग्रह केंद्र सरकार से किया था। हसदेव और माड़ नदी के जल ग्रहण क्षेत्र में कोल ब्लॉक आवंटित करने से होने वाली क्षति को रोकने की इस नीति से बघेल सरकार की सराहना होती है। छत्तीसगढ़ सरकार के पर्यावरण और विधि मंत्री मोहम्मद अकबर ने दो साल पहले ही तत्कालीन केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को इस बाबत साफ लिखा था। इसके बाद मदनपुर, स्यांग और फतेहपुर में एक और मोरगा में दो कोयले के खान समेत कुल 5 खदानों पर रोक लगाया गया था।
आदिवासियों के वनाधिकार की रक्षा हेतु संयुक्त राष्ट्र संघ ने पहल किया है। बघेल इसे आगे बढ़ाने की बात करते रहे। लेकिन मार्च में 1,136 हेक्टेयर क्षेत्र में कोयला के खनन का आदेश भी उन्होंने जारी किया। वनवासियों के वनाधिकार की पैरवी करने वाले बघेल मौका तलाश कर उद्योगपतियों का हित साधने से नहीं चूकते हैं। स्थानीय लोगों ने फिर विरोध प्रर्दशन शुरु किया। इन आदिवासियों के समर्थन में विलुप्त होते जीवों का संकट दूर करने में लगे लोगों के खड़े होने से इसकी गूंज दूर तक सुनाई देती है।
विकासवाद के नाम पर चलाए जाने वाले अभियानों के कारण जनजातीय समूहों के जीवन पर व्यापक असर पड़ा है। पलायन और बेरोजगारी की समस्या की जड़ में ये मौजूद है। आर्थिक प्रगति और विलोपन की समस्या के बीच का समीकरण आज कोई रहस्य नहीं रहा। लोकतंत्र के नाम पर अस्तित्व में आई राष्ट्र राज्य की अवधारणा दोनों ही वर्ग का हित साधती प्रतीत होती है। राजनीतिक अर्थशास्त्र के विश्लेषण से प्राकृतिक संपदाओं के रक्षक और भक्षक दोनों की वास्तविक पहचान हो जाती है। प्रकृति का घटक मान कर जीने वाले और प्रकृति के नियंताओं के बीच की इस जंग में आखिरी न्याय कुदरत ही करेगी। जल, जंगल और जमीन को अपना ही अभिन्न अंग मानकर जीने वाले आदिवासियों ने अंग्रेजी हुकूमत को सीधी चुनौती देकर फतह हासिल किया था। इसके उपरांत ट्राइबल पंचशील के युग से आज तक भी स्वराज का सपना साकार नहीं हो सका है। इस सत्याग्रह की सफलता एक बार फिर बापू के स्वराज की याद दिला सकती है।
विलोपन की छठी चुनौती का सामना कर रही दुनिया में जैवविविधता के संरक्षण का यह कार्य उल्लेखनीय है। यह राहुल गांधी और आदिवासियों के बीच संबंधों को पुनः परिभाषित करता है। साथ ही छत्तीसगढ़ के मुखिया कोल ब्लॉक के मामले में राज्य सरकार को केंद्र सरकार का डाकिया बता रहे हैं। खनिज संपदा से राजस्व की उगाही करने वाले राज्य सरकारों की संविधान में ऐसी ही स्थिति नहीं है। साथ ही संविधान की पांचवी और छठी अनुसूची में इनके लिए विशेष प्रावधान किया गया है। बीते अप्रैल में केन्द्रीय गृह मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग की चौदहवीं रिपोर्ट का संज्ञान लेकर राज्यपालों को इसे याद दिलाने का काम भी किया गया था।
हसदेव अरण्य की रक्षा में लगे सत्याग्रहियों की सफलता का मार्ग आसान नहीं रहा है। दंडकारण्य नाम से शास्त्रों में वर्णित क्षेत्र की संवेदनशीलता और जैवविविधताओं का ब्योरा उपलब्ध है। आज इसे संरक्षण की जरूरत है। धरती पर मानवजाति का अस्तित्व बना रहे, इसके लिए अपरिहार्य है। साथ ही मुनाफाखोरी में लगे धनकुबेरों, राजनेताओं और बाबुओं को इस विषय में गंभीरतापूर्वक विचार करना चाहिए।